इसमें ना प्यार की बातें हैं
इसमें ना भयानक रातें हैं
ना राजा है ना रानी है
फिर भी एक छोटी-सी कहानी है
कोमल किसलय के झूले पर
सोती थी मैं बालिका बनकर
आया वसंत वह जादू अगर
बिकसाया निज कर से छूकर
अंगडा़ई लेकर यौवन की
ज्योंही मैंने पलकें खोली
सुख शांत सुशोभित सुषमामय
देखी जग की सूरत भोली
इस अस्थिर जग उपवन में
झुक झूम-झूम लहराती थी
पत्तों को गिरते देख-देख मैं
हंसती और इठलाती थी
जीवन थोडा़ जग दो दिन का
मुझको ना कभी ध्यान रहा
सोचा न था कोई कमी
पत्तों से गिर जाएगा
यौवन सुंदर श्रीहीन हुआ
फिर भी माया के चक्कर में
भूल-सा रहता है प्राणी
सुख-दुख के सुंदर सपनों में
छोटी-सी मेरी यही कहानी
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